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Showing posts from March, 2023

" श्री राम नवमी "

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  "श्री राम नवमी " सीता , लक्षमण साथ लिए देखो दशरथनंदन की सवारी  फूल उछाल स्वागत में दर्शनार्थी लिए सारी | भजन से मन को मोहित किये  आज गायकों की टोली  माहौल में रंग जमाये  सजी अयोध्या नगरी | जन्मोत्सव की तैयारी किये  कौशल्या माई न्यारी  भगवा रंग पहने  जशन मनाये गावं वासी | मर्यादा पुरषोत्तम के उद्धेश्य लिए  कथा सुनाये प्यारी   अंजनीपुत्र के अभिनन्दन में,  दर्शाए  सच का  राही | खुशियों से घर में दीप लिए  लगे त्योहारों सी नगरी  सबकी इच्छायो को पूर्ण किये  रघुनन्दन पधारे अयोध्या नगरी|| -हिमानी सराफ

"मेरा सच्चा साथी "

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  "मेरा सच्चा साथी " मुश्किल समय से लड़ने का जिसने एहसास कराया  वक्त को पछाड़ कर जिसने जिना सिखलाया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया | जमीन की धुल को अपने सिरहाने लगाया  अपने कर्तव्य को सच्चे मन से निभाया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया | चतुरता का भाव सरलता से सिखाया  हर मंजिल के ठहराव की भूमिका को समझाया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया | धुतकारी वस्तु को जिसने अपनी सेज में सजाया  सहनशील मन से जिसने पथप्रदर्शक करवाया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया | गुमनाम भँवरे को जिसने अपना बनाया  विपत्ति में जो दवा बन कर आया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया | निराशा की रात में जो साया बन कर आया  मुरझे फूलो पर जिसने मरहम लगाया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया | पतझड़ के मौसम को जिसने बसंत कर दिखाया  कड़ी धुप में जो शीतल छाव बन कर आया  उसे मेने सच्चा साथी बनाया || -हिमानी सराफ

"शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते "

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 "  शायद पड़ोसी ऐसे ही कहलाते " सलाम करते गुजरते घर से  मोजुदगी का एहसास दिलाते जाते दिखे न कोई तो हाल चाल पूछने आते  अपनी तारीफों के गुणगान गाते जाते    शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते .........   दिखे न घर कोई तो बस नज़र रखते जाते  बिन बोले ही बस ख्याल रख जाते  ताक झांक से ही सही घर का ध्यान रख जाते  अपनी समझदारी की कथाये सुनाते जाते  शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते ......... समज के इशारे ही सब समज जाते  चाय की चुस्की लेने आते  सुख दुःख की कहानिया बताते जाते  अपनी चालाकी की मह्त्वकंशा दिखाते  जाते  शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते ......... काम छोड़ कर दोड़े चले आते  ना पूछने पर भी विशेष टिप्पड़ी देते जाते  इधर उधर की बात की चुगली करते जाते  अपनी अच्छाइयो के फूल बाटते जाते  शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते .........   गुजर  गया समय अब पडोसी नहीं आते  हो जरुरत तो भी नज़र नहीं डालते सुख में तो सही पर दुःख में भी नहीं आने के बहाने मारते बदलते ज़माने की इस दोड में अब परिवार ही पडोसी बनते जाते  शायद अब पडोसी ऐसे ही कहलाते || -हिमानी सराफ

"कर्मो की अदालत"

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" कर्मो की अदालत " ऐसी सुनवाई जहा में निष्फल हो गया  आज मेरा कहना अनर्थ हो गया  मेरा कर्मो की  पेशी में आना जरुरी हो गया  रहम कर खुदा , में कर्मो की अदालत पर आने को मजबूर हो गया | मुजरिमों की गली में मेरा भी दाखिला हो गया  मेरी माफियो का जमाना पुराना हो गया  मेरा गवाहों का फेसला रद्द हो  गया  रहम कर खुदा , में कर्मो की अदालत पर आने को मजबूर हो गया | चार दिवारी ही मेरा घर हो घर हो गया  मेरी सजाओ का जुर्मना अब बंद हो गया  ये दुःख का सूरज मेरी आफत हो गया  रहम कर खुदा , में कर्मो की अदालत पर आने को मजबूर हो गया | सालो तक रिहाई न होने का  सिलसिला हो  गया  शांति का फरमान मेरी आरज़ू हो गया  मेरा आशियाना अब झोपड़ी हो गया  रहम कर खुदा , में कर्मो की अदालत पर आने को मजबूर हो गया | खुशियों का ठिकाना अब मेरा लहजा हो गया  इन ज़ंजीरो का सामना रोज़ का हो गया  मेरी तकदीर के घर अब अँधेरा हो गया  रहम कर खुदा में कर्मो की अदालत पर आने को मजबूर हो गया | अच्छे कर्मो  का फल अब नामुमकिन हो गया  मेरी शोहरत का आँगन अब सुखा हो गया  पाप की सराखो से गुजरना मेरा सबक हो गया  रहम कर खुदा , में कर्मो की अद

मैं खुद भी सोचती हूं

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मैं खुद भी सोचती हु मैं खुद भी सोचती हु, क्या मेरा हाल है जिसका जवाब चाहिए वो क्या सवाल है । जो सह रही हूं, उसका इल्जाम किसे दु कल मेने ही बुना था, ये मेरा ही जाल है।  जो घाव दिल में है, उसका हिसाब कैसे लगाऊं किसी ने जाना ही नही, दिल का क्या हाल है । जो छुपे थे चेहरे, उन्हें ठिकाने कैसे लगाऊं ये मेरा ही प्यार है, मेरा वक्त बेहाल है । जो दिया है तुमने, उसे किनारा कैसे बनाऊं कल मेने ही छोड़ा था, आज उसी का इंतजार है । जो इंतहाम है मेरे कल के, आज उस वक्त को केसे भुलाऊ जिसका वक्त गुलाम है, बस उसी के लिए ये दिल बेकरार है । जो घर से चली तो दिल को कैसे समझाऊं  क्या मुझसे को गया, मुझे क्या मलाल है । फिर कोई ख्वाब देखु , कोई आरजू करू अब ये दिल तबाह है , तेरा क्या ख्याल है ।।                                                 -हिमानी सराफ

" मामा का लाडला"

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"मामा का लाडला" नान्ना सा, प्यारा सा, छोटा सा है छोटू मामा का लाडला है तू सबसे प्यारा है तू तुझे देख के खिल खिल करने को करता है दिल यूं झुक झुक के नाचता है मामा तेरे संग यूं यूं....... रै, नान्ना सा, प्यारा सा, छोटा सा है छोटू रोता है जब भी तू बुरा लगता है मुझको चॉकलेट को देखते ही दिल खुश कर देता है तू यूं नाचे नाना , नाचे नानी ठहक ठहक के यूं यूं....... घर का उजाला है तू बड़ा प्यारा है तू रै, नान्ना सा, प्यारा सा, छोटा सा है छोटू ठुग मुग ठूग मुग चलता है तू यूं तुझे देख के हां हां करने को करता है दिल यूं घर की चाहत है तू सबसे न्यारा है तू नाचे मम्मी, नाचे पापा तेरे संग यूं यूं...... रै, नान्ना सा, प्यारा सा, छोटा सा है छोटू सजे हुए गुब्बारों से खेलता है तू यूं प्यारी सी केक काटे मेरा छोटू यूं यूं गाते हुए मामा कहता है हैप्पी बर्थडे टू यू नाचे मामा तेरे संग ठुमक ठुमक के यूं यूं....... रै, नान्ना सा, प्यारा सा, छोटा सा है छोटू || -हिमानी सराफ    

"अब कौन सा नया मोड़ लेगी"

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"अब कौन सा नया मोड़ लेगी" जिंदगी के तूफान की लहरे अब कहा जाकर थमेगी है मुसाफिर अब तू ही बता ये जिंदगी अब कौन सा नया मोड़ लेगी । खड़कती बिजली की तेज अब कहा जाकर गिरेगी है बादल  तू ही बता जिंदगी अब कौन सा नया मोड़ लेगी । आग से निकली चिंगारी अब कहा जाकर रुकेगी है वायुसखा  तू ही बता जिंदगी अब कौन सा नया मोड़ लेगी । हवा के साथ आया बवंडर अब कहा जाकर रुकेगा है चक्रवात तू ही बता जिंदगी अब कौन सा नया मोड़ लेगी । मुसीबतों की आंधी अब कहा जाकर रुकेगी है किस्मत  तू ही बता जिंदगी अब कौन सा नया मोड़ लेगी ।।                                                                       -हिमानी सराफ

"कोई रोज"

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"कोई रोज " मेरी नजर को इस तरह चुराने की तुझमे हिम्मत  सारी है  तुझे कोई रोज उस नजर से ना देखू तो मेरी मासूमियत बेचारी है । मेरे होठों को इस तरह छूने की इजाजत तुझे सारी है तुझे कोई रोज ना छूलू तो मेरी तमन्ना ही उदारी है । मेरे हाथो को इस तरह थामने की तेरी आदत पुरानी है तुझे कोई रोज ना महसूस करू तो मेरी सारी शरारतें बेकारी सी है । मेरे दिल के दरवाजे को इस तरह खोलने की तेरी मंजूरी काफी है कोई रोज ना आए दस्तक तेरी  तो मेरी धड़कने आधी है । मुझ पर इस तरह हक जमाने की तेरी शरारते बड़ी प्यारी है तुझे कोई रोज ना सुनु तो मेरी जिंदगी जैसे बिना सवारी सी है । मेरे पाव में पायल इस तरह पहनाने की तेरी अपनी जुबानी है तुझे कोई रोज ना देखू उस पायल की खनखन में तो मेरी अधूरी सी कहानी है ।। -हिमानी सराफ

"कहा पीछे रही है ये बेटियां "

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"कहा पीछे रही है ये बेटियां" अरे काबिलियत की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां चाहे बेटी के सफर से बहु तक का  सबमें अव्वल है ये बेटियां अरे संघर्ष की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां अपने घर को संभालना हो या अपने काम को निखारना हो,  सबमें अव्वल है ये बेटियां अरे कर्तव्य की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां पापा के घर से लेकर पति के घर को संवारने तक,  सबमें अव्वल है ये बेटियां अरे गुणों की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां चाहे जीवन के दुख को पछाड़ना हो या मेहनत कर दिखाना हो  सबमें अव्वल है ये बेटियां अरे तकदीर की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां जीवन के कोई मुकाम हो या   खुद अपनी तकदीर बदलनी हो सबमें अव्वल है ये बेटियां  अरे कामयाबी की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां चाहे देश को चलाना हो या घर को सबमें अव्वल है ये बेटियां अरे जिम्मेदारियों की बात करू तो कहा पीछे रही है ये बेटियां एक पत्नी के रूप में हो या जननी के रूप में सबमें अव्वल है ये बेटियां अरे सतयुग हो या कलयुग कहा पीछे रही है ये बेटियां हर युग में महत्वकांक्षा और कल्याण का सार है और हर युग

खूबसूरत सी ढलती शाम में

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"खूबसूरत सी ढलती शाम में" ये कविता है प्यार की नई शुरुवात की,  सपनो की सौगात लिए  एक दुल्हन की रेशमी लाल जोड़े में क्या खूब सजी है आज उसके प्यार की नई सेज सजी है हाथ में   बखुब चुडा पहने  रखी है आज वो अपनी आंखे सेकते नही थकी है इस खूबसूरत सी ढलती शाम में , खुशी की लहर दौड़ पड़ी है । सर पर ओढ़नी लिए आज अपने मेहबूब के लिए निखरी है माथे पर बिंदी उसके यार के नाम की लगी है आज वो चहकती अपने महल की रानी बनी है इस खूबसूरत सी ढलती शाम में , वो इंतजार की घड़ियां लगाए बैठी है । पैर में पायल पहने उसकी खनखन की आवाज बिखेर रही है टीका लगाए माथे का अपने लंबे बालों को सवार रही है आज वो उस मोहल्ले में चमचमाती रोशनी का कारण बनी है इस खूबसूरत सी ढलती शाम में , वो ख्वाइशों की फरियाद समाये रही है । दूर से देखती, अपने प्यार की बारात जो द्वारे खड़ी है इंतजार करती दुल्हन अपने दूल्हे का क्या खूब लगी है आज वो उन मिलन की घड़ियों को देख बेफिक्र खड़ी है इस खूबसूरत सी ढलती शाम में , खुशबू फैलाए अपने मेहबूब के स्वागत में फूल बिछाए खड़ी है । देखती अपने ख्वाबों को हकीकत में बस शर्माए खड़ी है अपनी जिंदगी की नई

" तब आए ख्याल "

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"तब आए ख्याल" जिम्मेदारियों का बोझा उठाए जब हम घूमे इधर उधर तब आए ख्याल की   कोई भूखा न रह जाए हमारे घर । कोशिशों की अलमीरा में अगर रह जाए कोई भ्रम  तब आए ख्याल की  अधूरा न रह जाए हमारा कोई ड्रीम । परिवार की कल्पनाओं में अगर पड़ जाते कोई बाधा तब आए ख्याल की कैसे पूरी होगी ये हमारी अभिलाषा । जीवन के पड़ाव में अगर रह जाए हम पीछे  तब आए ख्याल की कैसे पार हो ये पथ सरीके से । उम्मीदों की बोरियों में अगर खुल जाए कोई गाठ तब आए ख्याल की   कैसे बांधे इसे हमारी कमजोरियों के साथ । दोहरे रास्तों में मंडराते घूम हो जाए डगर तब आए ख्याल की कैसे पाए जीवन की सही डोर पकड़ने की कदर । संभलते संभलते अगर पहुंच पाए किसी मोड़ पर तब आए ख्याल की क्या यही है हमारी कोशिशों का घर । नाकामयाबी की गठान में अगर सुलझ जाए कोई दोर तब आए ख्याल की  कई से चुरा न ले जाए इसे कोई चोर । उलझनों को सुलझाते  अगर पड़ जाए देर तब आए ख्याल की   ये डर है जो सीखा जाए जीवन के कई खेल ।।           -हिमानी सराफ  

"आज हमने हमारी कविता का शीर्षक कवि ही बना दिया"

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"आज हमने हमारी कविता का शीर्षक कवि ही बना दिया" आज हमने हमारी कविता का शीर्षक कवि ही बना दिया मानो ऐसा लगा, जैसे कुछ गहरे राज ने हमें लिखना सीखा दिया कभी ना ला सके जुबान पर अपने मन की बातो को  इसलिए हमने कलम को ही हथियार बना लिया । आज हमने हमारी कविता का शीर्षक कवि ही बना दिया मानो ऐसा लगा, जैसे कुछ कहानियों को हमने इन पन्नो में छुपा दिया कभी सोच न सके कोन सच्चा साथी बनेगा इस दिल की किताब का  इसलिए हमने मोहब्बत के लिए शिकार इस कलम को बना लिया | आज हमने हमारी कविता का शीर्षक कवि ही बना दिया मानो ऐसा लगा, जैसे कुछ ख्वाबों को मन में ही बसा दिया कभी कह न सके पर कुछ तो बात है इस दिल की गहराई में इसलिए तो इस बेजान कलम ने ही हमारे दुखो को मिटाने की वजह बना लिया । आज हमने हमारी कविता का शीर्षक कवि बना दिया मानो ऐसा लगा, जैसे कुछ परिंदो को गाना ही सिखा दिया कभी गा ना सके, पर हमारी दस्ताओ को इन शब्दों को सहारा बना लिया इसलिए इस कलम से दोस्ती कर हमने इसे अपना साथी ही बना दिया । आज हमने अपनी कविता का शीर्षक कवि बना लिया मानो ऐसा लगा, विराम रास्तों को जाना पहचाना बना दिया कभी जा न सके, पर

लत मत लगाओ यारों

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"लत मत लगाओ यारों" अच्छो अच्छों को बर्बाद करती है ये दारु सिगरेट युही बदनाम नही करती है पीते ही एक का दो दिखाती है  और ना पीयो तो हर पल पैग की याद दिलाती है दोस्त ना हो तो पीने का मजा भी नहीं और दोस्त पीने वाला हो तो जिंदगी में ही मजा नही । इसलिए तो कहते है यारों लत मत लगाओ यारों   नशे में दिल की बात जुबान पर ला देती है  कुछ छुपाना भी हो तब भी मजबूर बना देती है एक के बाद दो , दो के बाद चार से हो जाता है दिन लाइट अच्छे अच्छे लोगो की कर देती है ये हवा टाइट  इसलिए तो कहते है यारों लत मत  लगाओ यारों पार्टी के माहोल में सबके दिल पर राज करती है झूम झूम के सबको रोमांटिक बना देती है  रंगो के त्योहार में इससे हो जाता है मजा दुगना फिर जब बात संगत की आए तो मां बाप को मनाना पड़ता है तीन गुना इसलिए तो कहते है यारों लत मत लगाओ यारों चढ़ते ही रोमिओ झुलिओ की कहानी को ताजा कर देती है और बिना चढ़े मन की बात तक नही कहलवा सकती सब नशे में उड़ा बैठते है होश फिर डर जाने पर अचानक से सीधा हो जाता हर पोज इसलिए तो कहते है यारों लत मत लगाओ यारों अच्छे अच्छे को बर्बाद करती है ये दारु सिगरेट युही बदनाम नह

"वो कम था क्या "

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                                                                            "वो कम था क्या" क्या कमी रह गई हमारी कोशिशों में जितना भी किया वो कम था क्या ...... पलक झपकते ही नाकामयाबी ने गले लगा लिया जितना भी सहा वो कम था क्या ....... समय के कांटो को गिनते सबने इंजाम लगा दिया जितना भी भला सोचा वो कम था क्या ...... उम्मीदों भरी दुनिया में बेबुनियाद सा जंजाल बन गया जितना भी मुसीबतों से लड़े वो कम था क्या ...... समाज ने हमें शक के घेरे में डाल दिया जितना भी टूट कर बिखरे वो कम था क्या ....... इम्ताहानो से भरी हमारी किस्मत ने सहारा तक नही दिया जितना भी मेरी बिखरी हालत ने कहा वो कम था क्या ..... बिखरते हालतों ने संभलने का मौका तक नहीं दिया जितना भी हमने खोया वो कम था क्या ........ किस किस को जाकर शिकायत करती अपने टूटे दिल की जितना भी मेरी आंखो में नजर आया वो कम था क्या …........।। -हिमानी सराफ

एक छोटी सी गली में बस्ती थी हमारी खुशियां

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"एक छोटी सी गली में बस्ती थी हमारी खुशियां " एक छोटी सी गली में बस्ती थी हमारी खुशियां बहार निकलती और कहती थी चलो मस्ती करते है भाई बहनों के साथ पूरे आंगन में महकती थी । उस छोटी सी गली में हमारा झगड़ना लगा रहता था नाना नानी की डाट सुन कर थोड़ी सी डर जाती थी फिर मामी के हाथ के पकवान खा कर चहक उड़ती थी जन्नत भी वही थी और अमृत भी वही था,  उस छोटी सी गली में मेरे नाना का घर बस्ता था । मासी मंदिर से आते वक्त मिठाई लाती थी मासा गर्म गर्म समोसे और पोहे खिला कर दिल खुश कर देते थे उस छोटी सी गली में प्यार बरसता था । हर शाम मामा के साथ घूमने का मजा बहुत आता था  फिर सारा दिन मामी का प्यार मिलता था उस छोटी सी गली में ढेर सारा आशीर्वाद मिलता था । हर राखी पर साथ में राखी बांधना  हर दिवाली पर पटाखे जलाना हर होली पर रंगो की बौछार करना उस छोटी सी गली में प्यार का रंग खिलकता था । हर नए साल पर गाजर का हलवा और चिल्लाना जोर जोर से मम्मी पापा का लाड़ करना उस छोटी सी गली में नए साल का मजा ही कुछ और था  । तो ऐसी थी हमारी खुशियां रुलाती भी थी, हसाती भी थी मुरझाए हुए पेड़ को फिर से हरा भरा कर देती थी

"जब" थी ख्वाइश

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 " जब " थी ख्वाइश छोड़ दिया उसने बेगाना कह कर जब हाथ थामा था उसने अपना कह कर रोई थी में उन तनहा रातो में जब लहरा रही खुशिया उन बदलो में |   आँखों से ही नाता तोड़ गया वो  जब वो डूब जाता था इन आँखों की गहराई में कई  सहम गई थी उन राहों की कठिनाई में, जब दीये नई उम्मीदों के जले थे इन आँखों में कई | तोड़ गया वो कह कर की में उसके लायक नहीं  जब वो रहे नहीं सकता था मेरे बिन  थम गई थी में वो सुन कर, जब पानी बह रहा था नदियों में खुल कर | ठुकरा गया वो बुरा वक़्त है कह कर  जब वो गुजार नहीं पाता था वो वक़्त मुझे छोड़ कर  टुटा था दिल उन रातो में , जब कोई नहीं था साथ सिवाए उन हाथो के | बुरा के गया वो मुझे की वो मेरी तक़दीर में नहीं  जब लिखा था उसे खुदा ने मेरी लकीर में कही  बेसहरा थी उन विराम कमरों में , जब खिल रही थी कालिया  बाग में |   ना कह गया वो मुझे की अपनी पसंद एक नहीं  जब पता ही नहीं की पसंद तो में हु कही न कही  इंतज़ार करती रही में उस श्स्ख का , जब वो बारिश की बुँदे स्वागत कर रही थी नई ज़िन्दगी का | मुकर गया वो कह कर की साथ दूंगा ज़िन्दगी भर  जब रोया वो ही एक दिन ये सोच कर एक पल बेठी

"आईना"

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"आईना" गिरते गिराते संभाल के रखा है खुद को अपने ही षड्यंत्र में, देख लू आईना तो अपनी तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू जिसे बंद कर बैठे हम मन की आलमारी में । मुस्कान से ढके उन दुख के पल छिपाए बैठे है अपने ही मुख में, देख लू आईना तो अपनी तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू जिसे भुला बैठे है हम सपनो सी ढलती शाम में । दुर्बलता पर पर्दा डाले समा रखाहै खुद को अपने ही जाल में, देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू  जिसे खो बैठे है हम अंधेरो भरी रात में । नज़रे मिलाते चुरा रखा है खुद को अपनी ही नजर में, देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू  जिसे कोसो दूर ला बैठे है अपनी ही ज़िद में । खोजते खोजते मिटा रखा है खुद को अपने ही प्रयत्नों में, देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू  जिसे डूबा बैठे है हम अपनी ही अपेक्षा में । ढूंढते ढूंढते ला रखा है खुद को अपने ही जंगल में, देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्क को पहचान लू जिसे छिपा बैठे है हम अपनी ही किताबो में । अपने जीवन की गहराइयों को सजाए रखा है अपनी ही उदासी में, देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे

"कहा चले आएं हम"

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"कहा चले आए हम" जीवन की गुत्थी सुलझाते देखो कहा चले आए हम । होठों पर हसीं लिए देखो गम छुपा आए हम । सवालों के जवाब देते देखो उत्तर भूल आए हम । उलझनों को सुलझाते  देखो खुद सुलझ आए हम । किनोरो को ढूंढते देखो नदी पार कर आए हम । मंजिलो को खोजते देखो पत्थर से टकरा आए हम । सहारा देखते  अकेले ही सफर तय कर आए हम । उजाला खोजते देखो अंधेरा छुपा आए हम । नजरिया बदलते वक्त पीछे छोड़ आए हम । खेल खेल में देखो कितनी ठोकर खा आए हम । जख्मों को  मिटाते देखो दूरियां बना आए हम । कहानियां लिखते उम्र ही पछाड़ आए हम । तारीख  गिनते लम्हों को इम्ताह कर आए हम । कमजोरिया मिटाते देखो ताकत से रुफ्तरु कर आए हम । सच्चाई की मूरत बनते देखो आज खुद को पहचानना छोड़ आए हम । कड़वाहट को खत्म करते देखो आज मिठास ही भूल आए हम । जीवन का सफर तय करते देखो खुद को ही मिटा आए हम ।   क्यों न करे खुद एक सवाल की कहा चले आए हम | समय के चक्रव्यूह में ऐसे उलझे आज जीवन जीना ही भूल आए हम ।।                                                                                                                                 

अंधविश्वास

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"अंधविश्वास " तनाव के बीच झुलझ रहा विश्वास के उपर पनप रहा जिसकी न कोई सीधी रेखा  ये ढोंगियों के घर भर रहा । होगी न कभी मंशा पूरी ये विश्वास को ही रोंध रहा हर पीढ़ी में ये समा रहा सबकी बुद्धि ये मार रहा । पूजा पाठ को नष्ट कर रहा गतिविधियों को ये उत्साह रहा विद्या को ये जला रहा सिर्फ मोलवियो की ये सुन रहा । परिवर्तन पर रोक लगा रहा अपने विवेक को ये तोड़ रहा कुशलता को ही थामा रहा इस पर विश्वास हम अंदर से ही काट रहा । पड़ो न इसके पीछे  भला ना किसी का हो रहा बूढ़े गरीबों को दो पन्हा जिनकी जीवन नैया है अंधकार में तन्हा ।। - हिमानी सराफ  

क्या है ये डर

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"क्या है ये डर"  क्या है ये डर जो मन की घबराहट को चेहरे पर दिखा जाए दरवाजे बंद होने पर भी  खिड़कियों से दस्तक दे जाए।  जो उड़ती उम्मीदों की मासूमियत को खत्म कर जाए सर पर छतरी होने पर भी  भीगा कर चला जाए ।  जो जीवन की कथनी को आंखो से ही कहलवा जाए चंद पानी की बूंद होने पर भी बहा कर निकल जाए ।  संघर्ष की वो कहानियां  बचपन ही छीन ले जाए मजबूत दीवार होने पर भी बिजलियां घर में ही घुसा ले आये। जो थके हारे इंसान का जीवन ही नष्ट कर जाए लाख कोशिश होने पर भी इंसान के दिल में घर कर जाए ।।   - हिमानी सराफ

" रसोई की रानी "

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" रसोई की रानी" घंटो खड़े जब वो खाना पकाती है  बिना थके, बिना रुके होठो पर मुस्कान लिए जब वो  सबको गरमा गरम खिलाती है वो रसोई की रानी कहलाती है । सुबह शाम रात जब वो करछी चलाती है बिना कमाए, बिना मुरझाए हाथों से बलाए लिए जब वो सबके पेट का रास्ता वो दिल से  बताती है वो रसोई की रानी कहलाती है । भागते दौड़ते वो पूरे दिन कमरे से रसोई के चक्कर लगाती है बिना सोचे, बिना समझे आंखो में चमक लिए जब वो सबकी इच्छाओं को पुरा कर दिखाती है वो रसोई की रानी कहलाती है । बेटी से बहु, बहु से सास तक का सफर पल भर में तय कर जाती है  बिना कोई चाहत , बिना स्वार्थ अपनो का ख्याल लिए जब वो हर रूप में निखर कर आती है वो रसोई की रानी कहलाती है । सबसे पहले उठकर चाय दूध नाश्ता, खाना की तैयारी में लगी रहती है बिना खुद को सवारे, बिना दिखावे प्यार की मासूमियत लिए जब वो झटपट सबके दिल पर राज कर जाती है  वो रसोई की रानी कहलाती है । हजारों काम कुछ पल में फट से कर जाती है बिना सहारे , बिना खुद खाए होसलो का दिलासा देते हुए जब वो बड़े आनंद से रोटी अपने हाथो से खिलाती है वो रसोई की रानी कहलाती है । मसालों को भूनते

" खेल खेल में "

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" खेल खेल में " खेल खेल में निकले बाजार  उठा स्कूल का बैग ले आए खेल खेल में निकले स्कूल  उठा किताबो का थैला ले आए खेल खेल में निकले मैदान उठा ख्वाइशों का बोझा ले आए खेल खेल में निकले पढ़ने ऊच नीच का फर्क सिख आए खेल खेल में निकले ऊंचाई पर अमीरी गरीबी का तर्क बन आए खेल खेल में निकले मुकाम पर सच झूठ का स्वांग बन आए खेल खेल में निकले घर से और लोट कर आना ही भूल आए ।। - हिमानी सराफ  

सवाल

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"सवाल" थकी हारी बैठ जाऊं तो कैसे  कोशिशों को लगाम लगाऊं तो कैसे ये कमबख्त सवाल , जवाब देने तक रुके है क्या कई से  रूठी हुई हु, मान जाऊं तो कैसे मेहनत को विराम लगाऊं तो कैसे  ये बेबुनियादी सवाल , प्रत्युत्तर  देने तक रुके है क्या कई से  बदनसीब हु, इसे स्वीकारु तो कैसे अपनी उम्मीदों को थमाऊ तो कैसे ये बेमतलब के सवाल, मंजिल  पाने तक रुके है क्या कई से खामोशी से सब कुछ सुन जाऊं तो कैसे विश्वास को मन से मिटाऊं तो कैसे भयभीत करते ये सवाल, मुकाम  पर पहुंचने तक रुके है क्या कई से  इन सवालों के ढेर को भूल जाऊ तो कैसे जख्म जो दिल पर है इन्हे छुपाऊ तो कैसे कोई तो बता दो, आश्चर्य से उठे इन सवालों के उत्तर लाऊ तो लाऊ कहा से ।। - हिमानी सराफ

शायद बचपन ही प्यारा था

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    " शायद बचपन ही प्यारा था " शायद बचपन ही प्यारा था होठो पर बेमतलब की हँसी दोस्तों के साथ पुरे दिन मस्ती घंटों TOM & JERRY की कहानिया होती थी ना कंधो पर जिम्मेदारी थी ना कोई जवाबदारी ना आज का जिक्र था ना कल की फिक्र शायद बचपन ही प्यारा था हर सुबह उम्मीदो से भरी थी हर शाम मस्तानी थी हर दिन कहानियाँ भी सच्ची सी लगती थी हर काम अपना सा लगता था ना चेहरे पर सुस्ती थी ना थकान सी लगती थी ना तपती धूप चुभती थी ना ठिठुरती ठंड लगती थी शायद बचपन ही प्यारा था रोज़ एक नया किस्सा होता था जो मन में होता वह जुबान पर होता था रूठना मानना रोज़ का हुआ करता था शाबाशियों का सैलाब सा बहता था ना समझदार होने का दिखावा था ना सोच समझकर बोलना था ना किसी को बुरा लगने की चिंता थी ना किसी झूले से डर लगता था शायद बचपन ही प्यारा था कहा बदल गया वो बचपन बहानो में क्यों हसी को ढूढने के लिए घर से बहार निकलना होता है जिंदगी के झूले पर झूल तो आज भी रहे है बस हाथ छोड़ने से अब डर क्यों लगता है...!!! -हिमानी सराफ

तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया

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  "तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया"  💖💖💖 तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया  तेरे साथ शुरू हुई मेरी ज़िन्दगी आज जीने का मकसद बन गया  तेरे आँखों में आंसु आज मेरे दुःख का कारण बन गया  ऐ मेरे जानेमन ................. तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया | तेरी नजरो की हलचल आज मेरी सुन्दरता का पैगाम दे गया  तेरी वो शेतानिया आज मुझे  मुस्कान दे गया  तेरी दास्ताए आज मेरे लफ्जो का खिताफ बन गई    ऐ मेरे जानेमन ............... तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया | तेरे दिल का धडकना आज मुझे मेरी सांस दे गया  तेरा मुझसे मिलने आना मुझे मेरी खुशिया दे गया  तेरा मुझे युही प्यार करना परेशान कर गया  ऐ मेरे जानेमन ............   तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया   | तेरा मेरी मजाक बनाना आज तेरी याद का कारण बन गया  तेरा मंजिल को पाना आज मुझे रोशन कर गया तेरा हसना मेरी ख़ुशी का हिसाब लगा गया  ऐ मेरे जानेमन...............  तेरे प्यार का रंग मेरे होठो पर चढ़ गया | तेरा हमेशा साथ देना मेरी दोस्ती गहरी कर गया  तेरा मेरा ध्यान रखना हिम्मत बन गया  तेरा मुझसे बाते करना आज मेरी मोहब्

नकाब

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'' नकाब '' जीवन के कठिन पथ पर  लोगो को मुहँ फेरते देखा  चेहरे पर झूठा नकाब ओढे  हमारे पीठ पीछे हँसते देखा | कोई मदद मांग न ले सोचकर  हमारा साथ छोड़ते देखा  शराफत की चादर ओढे अपनों को रास्ता बदलते देखा | समय के घूमते चक्र पर  अपनों को रंग बदलते देखा  इंसानियत की बाते करने वालो को आज हमसे नाता तोड़ते देखा | सिक्को के पहलू को सुलझाते  किस्मत को कोसते देखा  साजिशो का मुखटा पहने  खुद से अपनों को जलते देखा | चंद ईमारत की सुनवाई पर सबको झगड़ते देखा  मर्यादा का घूँघट पहने  हमने हमारे अपने को ही बिखरते देखा | आँगन में खड़े एक दुसरो को इल्जाम लगाने पर  माँ बाप को बिलखते देखा  संस्कार की छाया से ढके हुए  हमने हमारे अपनों को ही टूटते देखा | बिखरे परिवार को खोजते हुए  युही बुढो को शैया पर जाते देखा  विश्वास से ढकी चादर ओढे  हमने उसे आखिरी अलविदा करते देखा || - हिमानी सराफ

सफलता

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  '' सफलता '' जिसका सफ़र है तनाव भरा  जिसका आरम्भ है कदम  जिसका चुनाव है कठिन  जिसका मार्ग है एक ही  वही है आनंद से भरा , जिसे कहते है सफलता | जिसका दस्तूर है चुनौतियो भरा  जिसका द्रष्टिकोण है सटीक जिसका मेहनत से हो दिन जिसकी अधूरी रह जाये  नींद  बस वही है शांतिप्रिय, जिसे कहते है सफलता | जिसका उम्मीद के बिना कोई सहारा नहीं  जिसका पग पग पर है जीवन कठिन जिसका मुश्किल हो सामना  जिसको डट कर हो निभाना  बस वही है मुकाम, जिसे कहते है सफलता | जिसकी कुंजी है लगन  जिसका दरवाजा है मेहनत जिसका मार्गदर्शक है उम्मीद  जिसका मनोबल है विशवास बस वही है राह, जिसे कहते है सफलता || - हिमानी सराफ