"कहा चले आएं हम"
"कहा चले आए हम"
जीवन की गुत्थी सुलझाते देखो कहा चले आए हम ।
होठों पर हसीं लिए देखो गम छुपा आए हम ।
सवालों के जवाब देते देखो उत्तर भूल आए हम ।
उलझनों को सुलझाते देखो खुद सुलझ आए हम ।
किनोरो को ढूंढते देखो नदी पार कर आए हम ।
मंजिलो को खोजते देखो पत्थर से टकरा आए हम ।
सहारा देखते अकेले ही सफर तय कर आए हम ।
उजाला खोजते देखो अंधेरा छुपा आए हम ।
नजरिया बदलते वक्त पीछे छोड़ आए हम ।
खेल खेल में देखो कितनी ठोकर खा आए हम ।
जख्मों को मिटाते देखो दूरियां बना आए हम ।
कहानियां लिखते उम्र ही पछाड़ आए हम ।
तारीख गिनते लम्हों को इम्ताह कर आए हम ।
कमजोरिया मिटाते देखो ताकत से रुफ्तरु कर आए हम ।
सच्चाई की मूरत बनते देखो आज खुद को पहचानना छोड़ आए हम ।
कड़वाहट को खत्म करते देखो आज मिठास ही भूल आए हम ।
जीवन का सफर तय करते देखो खुद को ही मिटा आए हम।
क्यों न करे खुद एक सवाल की कहा चले आए हम |
समय के चक्रव्यूह में ऐसे उलझे आज जीवन जीना ही भूल आए हम ।।
- हिमानी सराफ
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