अंधविश्वास


"अंधविश्वास "


तनाव के बीच झुलझ रहा
विश्वास के उपर पनप रहा
जिसकी न कोई सीधी रेखा 
ये ढोंगियों के घर भर रहा ।

होगी न कभी मंशा पूरी
ये विश्वास को ही रोंध रहा
हर पीढ़ी में ये समा रहा
सबकी बुद्धि ये मार रहा ।

पूजा पाठ को नष्ट कर रहा
गतिविधियों को ये उत्साह रहा
विद्या को ये जला रहा
सिर्फ मोलवियो की ये सुन रहा ।

परिवर्तन पर रोक लगा रहा
अपने विवेक को ये तोड़ रहा
कुशलता को ही थामा रहा
इस पर विश्वास हम अंदर से ही काट रहा ।

पड़ो न इसके पीछे 
भला ना किसी का हो रहा
बूढ़े गरीबों को दो पन्हा
जिनकी जीवन नैया है अंधकार में तन्हा ।।

- हिमानी सराफ 

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