" रसोई की रानी "


" रसोई की रानी"


घंटो खड़े जब वो खाना पकाती है 
बिना थके, बिना रुके होठो पर मुस्कान लिए जब वो 
सबको गरमा गरम खिलाती है
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

सुबह शाम रात जब वो करछी चलाती है
बिना कमाए, बिना मुरझाए हाथों से बलाए लिए जब वो
सबके पेट का रास्ता वो दिल से  बताती है
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

भागते दौड़ते वो पूरे दिन कमरे से रसोई के चक्कर लगाती है
बिना सोचे, बिना समझे आंखो में चमक लिए जब वो
सबकी इच्छाओं को पुरा कर दिखाती है
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

बेटी से बहु, बहु से सास तक का सफर पल भर में तय कर जाती है 
बिना कोई चाहत , बिना स्वार्थ अपनो का ख्याल लिए जब वो
हर रूप में निखर कर आती है
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

सबसे पहले उठकर चाय दूध नाश्ता, खाना की तैयारी में लगी रहती है
बिना खुद को सवारे, बिना दिखावे प्यार की मासूमियत लिए जब वो
झटपट सबके दिल पर राज कर जाती है 
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

हजारों काम कुछ पल में फट से कर जाती है
बिना सहारे , बिना खुद खाए होसलो का दिलासा देते हुए जब वो
बड़े आनंद से रोटी अपने हाथो से खिलाती है
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

मसालों को भूनते पूरे जिंदगी अपने आप को भूल जाती है
बिना सोए, बिना रोए अपनी रसोई में मसालों का हिसाब रखते जब वो
इन हल्दी मिर्च के रंग में खुद रंग जाती है 
वो रसोई की रानी कहलाती है ।

संवारते अपनी रसोई को वो अपनी उम्र भूल जाती है
फिर भी बिना रुके , बिना थमे हाथो में बेलन और होठों पर मिठास लिए जब वो
हर त्योहार पर प्यार की थाल बड़े चाव से सजाती है
वो रसोई की रानी कहलाती है।।

- हिमानी सराफ

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