"आईना"



"आईना"

गिरते गिराते संभाल के रखा है खुद को अपने ही षड्यंत्र में,
देख लू आईना तो अपनी तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू
जिसे बंद कर बैठे हम मन की आलमारी में ।

मुस्कान से ढके उन दुख के पल छिपाए बैठे है अपने ही मुख में,
देख लू आईना तो अपनी तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू
जिसे भुला बैठे है हम सपनो सी ढलती शाम में ।

दुर्बलता पर पर्दा डाले समा रखाहै खुद को अपने ही जाल में,
देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू 
जिसे खो बैठे है हम अंधेरो भरी रात में ।

नज़रे मिलाते चुरा रखा है खुद को अपनी ही नजर में,
देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू 
जिसे कोसो दूर ला बैठे है अपनी ही ज़िद में ।

खोजते खोजते मिटा रखा है खुद को अपने ही प्रयत्नों में,
देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू 
जिसे डूबा बैठे है हम अपनी ही अपेक्षा में ।

ढूंढते ढूंढते ला रखा है खुद को अपने ही जंगल में,
देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्क को पहचान लू
जिसे छिपा बैठे है हम अपनी ही किताबो में ।

अपने जीवन की गहराइयों को सजाए रखा है अपनी ही उदासी में,
देख लू आईना तो तस्वीर के पीछे उस शस्ख को पहचान लू 
जिसे ढके बैठे है हम अपनी ही शिकन भरी मुस्कान में ।।

-हिमानी सराफ

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