"जब" थी ख्वाइश


 " जब " थी ख्वाइश

छोड़ दिया उसने बेगाना कह कर
जब हाथ थामा था उसने अपना कह कर
रोई थी में उन तनहा रातो में जब लहरा रही खुशिया उन बदलो में |
 
आँखों से ही नाता तोड़ गया वो 
जब वो डूब जाता था इन आँखों की गहराई में कई 
सहम गई थी उन राहों की कठिनाई में, जब दीये नई उम्मीदों के जले थे इन आँखों में कई |

तोड़ गया वो कह कर की में उसके लायक नहीं 
जब वो रहे नहीं सकता था मेरे बिन 
थम गई थी में वो सुन कर, जब पानी बह रहा था नदियों में खुल कर |

ठुकरा गया वो बुरा वक़्त है कह कर 
जब वो गुजार नहीं पाता था वो वक़्त मुझे छोड़ कर 
टुटा था दिल उन रातो में , जब कोई नहीं था साथ सिवाए उन हाथो के |

बुरा के गया वो मुझे की वो मेरी तक़दीर में नहीं 
जब लिखा था उसे खुदा ने मेरी लकीर में कही 
बेसहरा थी उन विराम कमरों में , जब खिल रही थी कालिया  बाग में |
 
ना कह गया वो मुझे की अपनी पसंद एक नहीं 
जब पता ही नहीं की पसंद तो में हु कही न कही 
इंतज़ार करती रही में उस श्स्ख का , जब वो बारिश की बुँदे स्वागत कर रही थी नई ज़िन्दगी का |

मुकर गया वो कह कर की साथ दूंगा ज़िन्दगी भर 
जब रोया वो ही एक दिन ये सोच कर एक पल
बेठी हुई थी में उन यादो के सहारे, जब बिछे हुए थे फूल मेरे आंगन में सारे |

पलट कर भी नहीं देखा उसने इन आँखों में आंसु एक पल
जब देख नहीं सकता था वो मुझे रोता  एक पल
देख रही थी उन लम्हों को हर वक़्त, जब खोये हुए सपनो में जग रहा था एहसास हर वक़्त |

जाने कहा चला गया था वो जा रहा हु कह कर
जब मेरा दिल उसके पास था वो रह नहीं पायेगा ये सोच कर
मुस्करा रही थी उस दिन उसके लिए, जब देखते ही देखते ज़िन्दगी आ कड़ी थी नए मोड़ पे  ||

 

 

-हिमानी सराफ


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