खूबसूरत सी ढलती शाम में


"खूबसूरत सी ढलती शाम में"

ये कविता है प्यार की नई शुरुवात की,
 सपनो की सौगात लिए  एक दुल्हन की


रेशमी लाल जोड़े में क्या खूब सजी है
आज उसके प्यार की नई सेज सजी है
हाथ में   बखुब चुडा पहने  रखी है
आज वो अपनी आंखे सेकते नही थकी है
इस खूबसूरत सी ढलती शाम में, खुशी की लहर दौड़ पड़ी है ।

सर पर ओढ़नी लिए आज अपने मेहबूब के लिए निखरी है
माथे पर बिंदी उसके यार के नाम की लगी है
आज वो चहकती अपने महल की रानी बनी है
इस खूबसूरत सी ढलती शाम में, वो इंतजार की घड़ियां लगाए बैठी है ।

पैर में पायल पहने उसकी खनखन की आवाज बिखेर रही है
टीका लगाए माथे का अपने लंबे बालों को सवार रही है
आज वो उस मोहल्ले में चमचमाती रोशनी का कारण बनी है
इस खूबसूरत सी ढलती शाम में, वो ख्वाइशों की फरियाद समाये रही है ।

दूर से देखती, अपने प्यार की बारात जो द्वारे खड़ी है
इंतजार करती दुल्हन अपने दूल्हे का क्या खूब लगी है
आज वो उन मिलन की घड़ियों को देख बेफिक्र खड़ी है
इस खूबसूरत सी ढलती शाम में, खुशबू फैलाए अपने मेहबूब के स्वागत में फूल बिछाए खड़ी है ।

देखती अपने ख्वाबों को हकीकत में बस शर्माए खड़ी है
अपनी जिंदगी की नई शुरुवात को सोचते बेचैन हुई है
आज वो वरमाला लिए अपने मेहबूब की ओर चल पड़ी है
इस खूबसूरत सी ढलती शाम में, अपने मेहबूब के साथ मंडप में बैठे मग्न हुई है ।

फूलों से सजी उसके अरमानों की डोली क्या मस्त लगी है
अपनो को प्यार भरी मुस्कान लिए डोली में विदा लिए बैठी है
आज वो अपने गुजरे कल को याद किए रो पड़ी है
इस खूबसूरत सी ढलती शाम में, मेहबूब संग खुशियां लिए अपने नए आशियाने की ओर चल पड़ी है ।।

-हिमानी सराफ

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