" तब आए ख्याल "


"तब आए ख्याल"


जिम्मेदारियों का बोझा उठाए
जब हम घूमे इधर उधर
तब आए ख्याल की 
कोई भूखा न रह जाए हमारे घर ।

कोशिशों की अलमीरा में
अगर रह जाए कोई भ्रम 
तब आए ख्याल की
 अधूरा न रह जाए हमारा कोई ड्रीम ।

परिवार की कल्पनाओं में
अगर पड़ जाते कोई बाधा
तब आए ख्याल की
कैसे पूरी होगी ये हमारी अभिलाषा ।

जीवन के पड़ाव में
अगर रह जाए हम पीछे 
तब आए ख्याल की
कैसे पार हो ये पथ सरीके से ।

उम्मीदों की बोरियों में
अगर खुल जाए कोई गाठ
तब आए ख्याल की 
कैसे बांधे इसे हमारी कमजोरियों के साथ ।

दोहरे रास्तों में मंडराते
घूम हो जाए डगर
तब आए ख्याल की
कैसे पाए जीवन की सही डोर पकड़ने की कदर ।

संभलते संभलते अगर
पहुंच पाए किसी मोड़ पर
तब आए ख्याल की
क्या यही है हमारी कोशिशों का घर ।

नाकामयाबी की गठान में
अगर सुलझ जाए कोई दोर
तब आए ख्याल की 
कई से चुरा न ले जाए इसे कोई चोर ।

उलझनों को सुलझाते 
अगर पड़ जाए देर
तब आए ख्याल की 
ये डर है जो सीखा जाए जीवन के कई खेल ।।

          -हिमानी सराफ 

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