मैं खुद भी सोचती हूं


मैं खुद भी सोचती हु


मैं खुद भी सोचती हु, क्या मेरा हाल है
जिसका जवाब चाहिए वो क्या सवाल है ।

जो सह रही हूं, उसका इल्जाम किसे दु
कल मेने ही बुना था, ये मेरा ही जाल है। 

जो घाव दिल में है, उसका हिसाब कैसे लगाऊं
किसी ने जाना ही नही, दिल का क्या हाल है ।

जो छुपे थे चेहरे, उन्हें ठिकाने कैसे लगाऊं
ये मेरा ही प्यार है, मेरा वक्त बेहाल है ।

जो दिया है तुमने, उसे किनारा कैसे बनाऊं
कल मेने ही छोड़ा था, आज उसी का इंतजार है ।

जो इंतहाम है मेरे कल के, आज उस वक्त को केसे भुलाऊ
जिसका वक्त गुलाम है, बस उसी के लिए ये दिल बेकरार है ।

जो घर से चली तो दिल को कैसे समझाऊं 
क्या मुझसे को गया, मुझे क्या मलाल है ।

फिर कोई ख्वाब देखु , कोई आरजू करू
अब ये दिल तबाह है , तेरा क्या ख्याल है ।।
 
                                              -हिमानी सराफ

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