"शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते "


 "  शायद पड़ोसी ऐसे ही कहलाते "

सलाम करते गुजरते घर से 
मोजुदगी का एहसास दिलाते जाते
दिखे न कोई तो हाल चाल पूछने आते 
अपनी तारीफों के गुणगान गाते जाते 
 शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते .........
 
दिखे न घर कोई तो बस नज़र रखते जाते 
बिन बोले ही बस ख्याल रख जाते 
ताक झांक से ही सही घर का ध्यान रख जाते 
अपनी समझदारी की कथाये सुनाते जाते 
शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते .........

समज के इशारे ही सब समज जाते 
चाय की चुस्की लेने आते 
सुख दुःख की कहानिया बताते जाते 
अपनी चालाकी की मह्त्वकंशा दिखाते  जाते 
शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते .........

काम छोड़ कर दोड़े चले आते 
ना पूछने पर भी विशेष टिप्पड़ी देते जाते 
इधर उधर की बात की चुगली करते जाते 
अपनी अच्छाइयो के फूल बाटते जाते 
शायद पडोसी ऐसे ही कहलाते .........
 
गुजर  गया समय अब पडोसी नहीं आते 
हो जरुरत तो भी नज़र नहीं डालते
सुख में तो सही पर दुःख में भी नहीं आने के बहाने मारते
बदलते ज़माने की इस दोड में अब परिवार ही पडोसी बनते जाते 
शायद अब पडोसी ऐसे ही कहलाते ||


-हिमानी सराफ

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