"कोई रोज"


"कोई रोज "

मेरी नजर को इस तरह चुराने की तुझमे हिम्मत  सारी है 
तुझे कोई रोज उस नजर से ना देखू तो मेरी मासूमियत बेचारी है ।

मेरे होठों को इस तरह छूने की इजाजत तुझे सारी है
तुझे कोई रोज ना छूलू तो मेरी तमन्ना ही उदारी है ।

मेरे हाथो को इस तरह थामने की तेरी आदत पुरानी है
तुझे कोई रोज ना महसूस करू तो मेरी सारी शरारतें बेकारी सी है ।

मेरे दिल के दरवाजे को इस तरह खोलने की तेरी मंजूरी काफी है
कोई रोज ना आए दस्तक तेरी  तो मेरी धड़कने आधी है ।

मुझ पर इस तरह हक जमाने की तेरी शरारते बड़ी प्यारी है
तुझे कोई रोज ना सुनु तो मेरी जिंदगी जैसे बिना सवारी सी है ।

मेरे पाव में पायल इस तरह पहनाने की तेरी अपनी जुबानी है
तुझे कोई रोज ना देखू उस पायल की खनखन में तो मेरी अधूरी सी कहानी है ।।


-हिमानी सराफ

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