नकाब
'' नकाब ''
जीवन के कठिन पथ पर
लोगो को मुहँ फेरते देखा
चेहरे पर झूठा नकाब ओढे
हमारे पीठ पीछे हँसते देखा |
कोई मदद मांग न ले सोचकर
हमारा साथ छोड़ते देखा
शराफत की चादर ओढे
अपनों को रास्ता बदलते देखा |
समय के घूमते चक्र पर
अपनों को रंग बदलते देखा
इंसानियत की बाते करने वालो को
आज हमसे नाता तोड़ते देखा |
सिक्को के पहलू को सुलझाते
किस्मत को कोसते देखा
साजिशो का मुखटा पहने
खुद से अपनों को जलते देखा |
चंद ईमारत की सुनवाई पर
सबको झगड़ते देखा
मर्यादा का घूँघट पहने
हमने हमारे अपने को ही बिखरते देखा |
आँगन में खड़े एक दुसरो को इल्जाम लगाने पर
माँ बाप को बिलखते देखा
संस्कार की छाया से ढके हुए
हमने हमारे अपनों को ही टूटते देखा |
बिखरे परिवार को खोजते हुए
युही बुढो को शैया पर जाते देखा
विश्वास से ढकी चादर ओढे
हमने उसे आखिरी अलविदा करते देखा ||
- हिमानी सराफ

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