शायद बचपन ही प्यारा था



    "शायद बचपन ही प्यारा था"


शायद बचपन ही प्यारा था
होठो पर बेमतलब की हँसी
दोस्तों के साथ पुरे दिन मस्ती
घंटों TOM & JERRY की कहानिया होती थी

ना कंधो पर जिम्मेदारी थी
ना कोई जवाबदारी
ना आज का जिक्र था
ना कल की फिक्र
शायद बचपन ही प्यारा था

हर सुबह उम्मीदो से भरी थी
हर शाम मस्तानी थी
हर दिन कहानियाँ भी सच्ची सी लगती थी
हर काम अपना सा लगता था

ना चेहरे पर सुस्ती थी
ना थकान सी लगती थी
ना तपती धूप चुभती थी
ना ठिठुरती ठंड लगती थी
शायद बचपन ही प्यारा था

रोज़ एक नया किस्सा होता था
जो मन में होता वह जुबान पर होता था
रूठना मानना रोज़ का हुआ करता था
शाबाशियों का सैलाब सा बहता था

ना समझदार होने का दिखावा था
ना सोच समझकर बोलना था
ना किसी को बुरा लगने की चिंता थी
ना किसी झूले से डर लगता था
शायद बचपन ही प्यारा था

कहा बदल गया वो बचपन बहानो में
क्यों हसी को ढूढने के लिए घर से बहार निकलना होता है
जिंदगी के झूले पर झूल तो आज भी रहे है
बस हाथ छोड़ने से अब डर क्यों लगता है...!!!

-हिमानी सराफ


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