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Showing posts from April, 2023

"बहुत अखरती है जुदाई यारो की"

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" बहुत अखरती है जुदाई यारो की"   बहुत अखरती है जुदाई यारो की कहा तो हम इतना वक़्त साथ में गुजार दिया करते थे  आज उस वक़्त का इंतज़ार करते महीनो बिता दिया करते है |     बहुत अखरती है यादे  यारो की फ़िज़ूल की बातो में नींद भुला दिया करते थे  आज एक पल की मुलकात के लिए बहाने मारते है |   बहुत अखरती है  तन्हाई यारो की एक रिंग पर सब दोड़े चले आते थे  आज रिंग करने के लिए नाम सोचने पड़ते है |   बहुत अखरती है फ़िक्र यारो की हजारो दोस्तों  की  लिस्ट नहीं बनानी  होती थी  आज अपना कहने के लिए नाम स्क्रॉल करने पड़ते है |   बहुत अखरती है दूरियां यारो की बीती बातो को याद किये बिना भी  साथ चल दिया करते थे आज दुःख में साथी का अंदाज़ा लगाना पड़ता है |   बहुत अखरती है बैचेनी यारो की उदासी का कारण बताये बिना भी ख़ुशी के बहाने मिल जाते थे  आज अपने दुःख का कारण बताने भी सामने से जाना पड़ता है |   बहुत अखरती है स्मृति यारो की दोस्तों की टोली में हमेशा न होने वाली की कमी खनकती थी  आज दो दोस्त का मिल पाना भी मुश्किल  दिखाई पड़ता  है |     बहुत अखरती है प्रथकता  यारो की  हम बदल जायेंगे ये सोच कर हजारो वादे किया करते

बेरोजगार"

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"बेरोजगार" अब आया ये सवाल क्यों रह गया में बेरोजगार डिग्री पा ली BA-MA  फिर भी क्यू हुं बेकार सुन-सुन कर ताने हो गया हताश कब मिलेगा मुझे रोजगार रह जाता हमेशा १ नंबर पीछे कब अच्छा रिजल्ट देगी ये सरकार तनाव से भरे मेरे दिन-रात कब आयेगी मेरी जिंदगी में बहार रोज नई वेकेंसी को देख में भी बैठ गया थक हार मां बाप के उदास चेहरे  कैसे देखता में हर बार देखता खुद को अफसर बनते कब होगा मेरा सपना साकार रोज देखते मेहनत को हारते कब तक कहु हौसला है बेकार करके बलिदानी अपनी इच्छाओं की कब तक में ना कहलाऊ हुनहार रोज सुर्खियों में आते  बन बैठा में ही समाचार करते skip इन दिनों को जिंदगी से बनता चला में ही अनचाहा प्रचार अनचाही नौकरी के अवसर पाते कही बन न जाऊं में चौकीदार ।।     -हिमानी सराफ 

सुहानी सहेलियां

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सुहानी सहेलियां जब में आई थी यहां नई नई सोचा था कोई बनेगी सहेली कई थी में बड़ी सहमी हुई की याद करेगा मुझे कोई यही कई फिर मिली में उनसे जो है सीधी साधी सी जो कहलाती है बिल्ली दी गोरे से मुखड़े पर सेज प्यारी सी दिखती है वो भोली भाली सी मिली जब उनसे तो मुलाकाते की न्यारी सी है फूलों सी प्यारी बस है ससुराल की मारी सी फिर मिली में उससे जो है दिखने में भारी सी पर है वो दिल की सारी सी मां से ही झगड़ती पर है पापा की लाडली सी चाय की प्यासी, है बड़े दिल वाले सी मिली में उस जाडी से, पूरी हुई कमी बहन की खाली सी है वो जज साहिबा सी, पापा के सपनो की क्यारी सी फिर मिली में जब एक लड़की से जो है नन्ही सी कली सी बातों बातों में पता चला वो तो है बड़बोली चढ़ी सी है फैशन क्वीन सी, उलझी कपड़ो की भीड़ सी मिली में जब उससे तो पता चला ये चुटकी है कली सी है वो मखमल सी, रहती सजी रानी सी मिले जब हम सब तो मस्ती करी ढेर सारी सी पूरी हुई ख्याइश सहलियो से मिलने की प्यारी सी याद करेंगे सब जब होंगे दूर अपनी बस्ती में कई ऐसे ही खुश रहना पलटन यही मिलेंगे दुबारा इस जिंदगी में कई ।। -हिमानी सराफ

दादा दादी

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दादा-दादी अकड़ भी है, गुरुर भी है, रुतबा भी है चेहरे पर गुस्सा ,आंखो में तेज भी है निकले जब बन थन के तो किसी से कम नहीं है वो और कोई नही मेरे मिजाजी दादा जी है थाट बात शान शोहरत है उनकी उनकी बेटियां दौलत है जिनकी प्यार करे तो सब कुछ लुटा दे और गुस्सा करे तो एक पल में रूला दे वो और कोई नही मेरे गुस्से वाले दादा जी है जिनकी मुस्कुराहट जान है जिसकी जिनकी मधुरता गर्व है जिनका जिसके लिए सबसे लड़ ले, और जिसके लिए जन्नत सजा दे वो और कोई मेरे प्यारे दादा जी की प्यारी बीवी है अकड़ती भी है झगड़ती भी है निकलती है जब बन थन के तब रह जाती है दंग उनकी बहुए उन्हें देख के कहने में उनकी सांस कहलाती है वो और कोई नही मेरी प्यारी दादी जी कहलाती है डाटते भी है मान भी जाते है बदमाश पोतो के बादशाह है चहकती पोतियों की कोहिनूर है वो और कोई नही मस्ती खोर बच्चो के दादा दादी कहलाते है l  -हिमानी सराफ

"हवाई जहाज "

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  " हवाई जहाज " पंखो से तरे ले ली आज उडान हमारी  समय को विराम कर   सपनो को पूरा कर परिंदों से बतिया कर  इस हलचल का आज हमने जिक्र किया | किताबो में सुनी विमान की कहानी  पासपोर्ट चेक करावा कर  परिवार को अलविदा कर  हौसले को कायम कर  इस नई यात्रा का हमने जिक्र किया | उड़ने से पहले ज़मीन पर दोड़ने  की ज़ुबानी  उस दृश्य को महसूस कर  खुशनुमा पल का इंतज़ार कर  दिल के पैगाम का ऐलान कर  इस नए  सफ़र का हमने ज़िक्र किया | बादलो से नजदीकियों की फ़रमाईशी कल्पनाओ को हकीकत में देख कर  नक़्शे की सच्चाई को देख कर  एयर होस्त्रेस से मेल कर इस चमकती आंख से हमने पहली उडान का ज़िक्र किया || -हिमानी सराफ

"मोबाइल फोन"

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"मोबाइल फोन" दूरियां मिटाते समय को कम कर मिलो की दूरी पल भर में पार कराते इस अविष्कार के जरिए  न जाने ये कितनों को रोजगार दिलाते | नजदीकियां बढ़ाते मन में नई खुशी लिए तरह तरह की बाते सिखाते इस माध्यम से सबको अपने पास पाते न जाने ये कितने कमाल दिखाते | बच्चों के बचपन को टटोलते  बड़ो से अपनेपन को , बूढ़ों को तहना करते सबकी आदत को बिगड़ते इस तकनिक  के बिना रह नही पाते  न जाने कैसे इस बनावटी दुनिया से सब घुल मिल जाते  | भरपाई के प्रकार को बढावा देते शिक्षा के नवीन स्त्रोतों से पहचान कराते नए तौर तरीके सिखाते  इस खोज के प्रयोग से कितनी मुश्किलें हल कराते न जाने कैसे प्रत्येक उपचार को प्राथमिकता दिलाते | मनोरंजन को अपनाते  सबको घर का बनाते जाते  ध्यान से  भटकाते सब  इस यन्त्र के दीवाने होते जाते  न जाने कैसे ये अपनों की जरुरत को खत्म करते जाते || -हिमानी सराफ 

"नारी शक्ति"

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"नारी शक्ति" नारी भी में , शक्ति भी में अंगारों से अब मुझे डर नही । धर्म भी में, अधर्म भी में हौसला है अब बुलंद जो यही । जननी भी में, जीवन भी में ममता पर अब कोई आंच नहीं । क्रूर भी में, दयालु भी में मेरे लिए उठे अब वो प्रश्न ही नहीं । स्वाभिमानी भी में, आत्मनिर्भर भी में समझना न मुझे आधी अधूरी कही । दर्पण भी में, अक्स भी में झुका सके मुझे वो शक्ख नही । ससक्त भी में, साकार भी में टूट के बिखरु वो आकार नहीं । भाग्य भी में, विद्वान भी में दुर्बल समझे मुझे वो ज्ञानी नही । साथी भी में, ढाल भी में पीछे हटे अब ऐसी नारी ही नहीं ।। -हिमानी सराफ

"उस चांद से"

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" उस चांद से" पूर्णिमा की रात में जब पड़ी हमारी नजर उस चांद पे यकीनन हमारे प्यार पर वो भी हमे उस चांद में ही देख रहा होगा । उस प्यार भरी रात में जब देखा हमने उसे उस चांद में  यकीनन हमें हमारी यादों पर उसने भी हमारी झलक को महसूस किया होगा । उस मिलन की रात में जब मांगा हमने उसे उस चांद से यकीनन हमें हमारे मन पर उसने भी हमें ही चुना होगा । टिमटिमाती रात में जब दिखा हमें टूटता तारा उस चांद के पास में यकीनन हमें हमारी ज़िद पर उसने उस तारे से हमें ही मांगा होगा । पूरी रोशनी से भरी रात में जब टिकी हमारी नजर उस चांद पे लगे दाग पे यकीनन हमें हमारी मोहब्बत पर उसने हमें हमारी कमजोरी के साथ अपनाया होगा । उस शर्मीली सी रात में जब सोचती हमारी निगाहे उस चांद को देखते यकीनन हमें उस चांदनी पर हमें एक होते देख गगन भी मुस्कुराया होगा । -हिमानी सराफ

"फसल मेरी मेहनत की "

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"फसल मेरी मेहनत की" जाने कल क्या होगा मेरी मेहनत का फल है उम्मीद की जीत लूंगा सब बस मन मे जग रहा है डर केसे मेरी जीवन की नैया पार हो कल कब जाकर मिलेगा मेरी मंजिल का पल ये फसल मेरी मेहनत की क्या फिर से मुझ निराश कर जायेगी | चला साथ में हमदम केसे उपजाऊ हो ये कल करी  मेहनत की रनगोलि भरी उसमे आशा की किरण ये फसल मेरी मेहनत की क्या फिर से मुझ निराश कर जायेगी | सब मेहनत सुबह शाम की इस बार भी गरात जायेगी फिर से मिट्टी सीचो फिर अगली बार की फिक्र करो फिर अपने हर एक लहू की याद दिलाएगी ये फसल मेरी मेहनत की क्या फिर से मुझ निराश कर जायेगी | फिर से कोनो खुदरो में बिलखते रहना है फिर से एक बार उजाड़ना है फसल पकी तो भरपाया है नही तो हर समय इसी दोर से गुजरना है ये  फसल मेरी मेहनत की क्या फिर से मुझ निराश कर जायेगी ||                               - हिमानी सराफ

"ये लड़के "

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" ये लड़के " घर का गौरव एक मिसाल जिनके बिना मच जाये बवाल |   अपनी सोच से कामयाबी लिए  उन्नति घर की कायम किये धेर्य से सबको प्रभावित किये  मन में संतोष भर सबकी इच्छाओं को पूर्ण किये  उदासी को छिपाए घर की रौनक को बरक़रार किये  कठिन परिस्तिथियों में सबको प्रशंसित किये  अपने अनुभव से सबको सचेत किये  निरंतर प्रयास को सिद्ध किये  मान मर्यादा को गर्वित किये  समय को भेदते निरंतर प्रयत्न किये  विश्वास से घर में उजाला किये दर दर भटकते अपनी जीवनी के लिए  अपने पगड़ी की शान को लिए  अपने दर्द पर खुद मरहम लगाते एक पल भी ना टूटने की कसम खाते  सबके जीवन की ढाल बनते जाते  केसे तुलना हो इनकी , ये लड़के भी थक जाते  केसे परेशानी को छिपाते , ये लड़के भी टूट जाते  केसे सबको सँभालते , ये लड़के मन में कई राज़ लिए ही  जिना सिख जाते ||     -हिमानी सराफ

"सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न "

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 "सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न "   क्यों बार बार जाऊ जाऊ कहती हो थक गया हु , सर पर हाथ रख दो न  उदास हु, मेरे मन को बहला दो न  मायूस हु, पास आ जाओ न सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न | केसे मेरी परेशानी दूर करू, इस बात का जवाब दो न  मेरे मन में छिपे दर्द को पहचान लो न  थोड़ी बात में करू ,तुम भी अपनी कह दो न  सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न |   क्यू चुप हु काफी दिनों से मुझसे भी पूछ लो न में सुन तो रहा हु, अपने राज़ मुझे कह दो न  इस मुश्किल समय में, मुझे समझ जाओ न  सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न |   अकारण मिलने फिर से आ जाया करो न  बेसबब प्रश्नों से कभी परेशान कर दिया करो न  में मजबूर हु , थोडा इंतज़ार तो करो न सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न |   बेबात सवाल पूछना ,अब बंद कर दो न मेरे इकरार को गलत मत समझो न  मुझे सजा मंज़ूर है , बस नाराज़ मत रहा करो न  सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न |   उन वादों को एक बार फिर से याद कर लो न नफरत भी करती हो तो एक बार बोल दो न  मेरे जख्मो को ओर मत कुरेदो न मेरे गलतियों को एक बार  तो नज़रंदाज़ कर दो न सुनो रुको, कुछ पल ठहर जाओ न ||     -हिमानी सराफ

प्रकृति : पर्यावरण का एहसास

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प्रकृति : पर्यावरण का एहसास मधुर आचरण से प्रभावित   धरती की सुंदरता को बनाए हर मौसम की गतिविधि को निभाए सर्द, गर्म से शोभा बढ़ाए ये प्रकृति अनेकों रूप दिखलाए । प्रकृति का अद्भुत तोहफा  जिससे कोई विवश ना रह पाए बर्फ से ढक पहाड़ों को सजाए पेड़ो पर हरियाली को निभाए नदियों के बहाव को लुभाए ये प्रकृति बेमतलब आनंद दे जाए । बहते झरने शीतलता को बढ़ाए सूरज की रोशनी से दिन बन जाए अंधियारी रात में तारे टिमटिमाए  गगन अपने ही करतब दिखाए ये प्रकृति सुख शांति का प्रतिक कहलाए । अनेक मृदा को महसूस कराए कभी सफेद तो कभी रेगिस्तानी कितने रूप दिखाए विभिन्न जलवायु से परिचित करवाए मीठे फल व सुंदर फूलों से मनोभित कराए ये प्रकृति विभिन्न तरीकों से लाभान्वित कराए ।  मिलकर हम भी कसम खाए प्रकृति को प्रदूषण से बचाएं बदले हम तस्वीर यहां की सुंदर सा दृश्य बनाए संदेश ये हम सब तक फैलाए मिलकर हम प्रकृति को  लुभाए ।।                                                                                                                              -हिमानी सराफ

"छोड़ रखा है "

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  "छोड़ रखा है " मंजूर है हमे हर सजा , हमने अब गिनना छोड़ रखा है | कबुल है हमे हर शिख्वे , हमने अब हिसाब रखना छोड़ रखा है | ऐतराज़ नहीं है हमे दिखावे से, हमने अब निभाना छोड़ रखा है | स्वीकार है हमे हर जख्म , हमने अब जताना छोड़ रखा है | फर्क नहीं है हमे रिश्तो को खोने से , हमने अब सब दिल से उतार रखा है | जरुरत नहीं है हमे सहारे की , हमने अब भरोसा करना छोड़ रखा है | मेहफुस है हम हर शास्ख से , हमने अब किसी को अपना बताना छोड़ रखा है | तर्क नहीं है हमे कसी उलझन से , हमने अब किसी को सच बोलना छोड़ रखा है | कीमत नहीं है हमे बेवजूद जवाबो की , हमने अब सवाल करना छोड़ रखा है || -हिमानी सराफ

"ये देशवासी"

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"ये देशवासी" गुलामी की जंजीर में लगे हर जख्म दिल में खुले आसमान को छुने चल पड़े ये देशवासी । वतन के नाम पर मर मिटने वाले शहीदों के गम में तजुर्बा लिए उम्मीद का लड़ पड़े ये देशवासी । लाठियो के ढेर में लगे घाव जिस्म पे आजादी की दोर में रो पड़े ये देशवासी ।  उठे अंगारे हिंदू मुस्लिम के मदभेद में छू कर अपने वतन की मिट्टी को मिसाल बन पड़े ये देशवासी । निर्दोष के मन में उठे सवाल खून की होली के जवाब मांगते उठा डांडी हाथ में निकल पड़े ये देशवासी । जहर का घुट पी कर खड़े उस हर बलिदानी पे विनती करते स्वतंत्रता की भूख हड़ताल पर बैठ गए ये देशवासी ।  विवाद से उठे प्रश्न हर उस बंदिशों की याद में स्वाधीनता की कुंजी लिए कुद पड़े ये देशवासी । गुलामी के षड्यंत्र में उन हर फैसलों पे जीत का परचम फैलाए तिरंगे संग लौट आए ये देशवासी ।।     -हिमानी सराफ

"क्या बात कह दी उसने"

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"क्या बात कह दी उसने" हाथ में कलम लिए पन्नो को सजाना काम है मेरा..... मोहब्बत को लब्जो में सजाने वाला यार है मेरा..... बस यूंही बात कह दी उसने  पहली मुलाकात की तोहिफ रख दी उसने मन में विचार तो बहुत आए पर शर्माते हुए हां कर दी हमने । बातों बातों में मुलाकात की तारिक तय कर दी उसने मेरी खूबसूरती को चमक दे दी उसने लाल ड्रेस पहन कर आना यह शर्त रख दी उसने बस फिर क्या शर्माते हुए हां कर दी हमने । जब मुलाकात का दिन आया तो तारीफ क्या कर दी उसने जमाने भर की खुशी मेरे कदमों में रख दी उसने उसने पूछा मेरे साथ खाना खाओगी बस फिर क्या शर्माते हुए हां भर दी हमने । घबराहट भरी आवाज़ में प्यार का इजहार क्या किया उसने ऐसा लगा मेरे मन की बात ही कह दी उसने उसने पूछा शादी करोगी बस फिर क्या होठ पर हसीं, आंखे झुकी और शर्माते हुए हां भर दी हमने । मेरा हाथ थामा तो जिंदगी ही बदल दी उसने जैसे मेरी तकदीर को राह दे दी उसने उसने पूछा शादी की तारिक को मंजूरी दे दु बस फिर क्या शर्माते हुए नई जिंदगी को हां कर दी हमने ।। - हिमानी सराफ