सुहानी सहेलियां

सुहानी सहेलियां

जब में आई थी यहां नई नई
सोचा था कोई बनेगी सहेली कई
थी में बड़ी सहमी हुई
की याद करेगा मुझे कोई यही कई

फिर मिली में उनसे जो है सीधी साधी सी
जो कहलाती है बिल्ली दी
गोरे से मुखड़े पर सेज प्यारी सी
दिखती है वो भोली भाली सी
मिली जब उनसे तो मुलाकाते की न्यारी सी
है फूलों सी प्यारी बस है ससुराल की मारी सी

फिर मिली में उससे जो है दिखने में भारी सी
पर है वो दिल की सारी सी
मां से ही झगड़ती पर है पापा की लाडली सी
चाय की प्यासी, है बड़े दिल वाले सी
मिली में उस जाडी से, पूरी हुई कमी बहन की खाली सी
है वो जज साहिबा सी, पापा के सपनो की क्यारी सी

फिर मिली में जब एक लड़की से जो है नन्ही सी कली सी
बातों बातों में पता चला वो तो है बड़बोली चढ़ी सी
है फैशन क्वीन सी, उलझी कपड़ो की भीड़ सी
मिली में जब उससे तो पता चला ये चुटकी है कली सी
है वो मखमल सी, रहती सजी रानी सी

मिले जब हम सब तो मस्ती करी ढेर सारी सी
पूरी हुई ख्याइश सहलियो से मिलने की प्यारी सी
याद करेंगे सब जब होंगे दूर अपनी बस्ती में कई
ऐसे ही खुश रहना पलटन यही
मिलेंगे दुबारा इस जिंदगी में कई ।।

-हिमानी सराफ

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