दादा दादी



दादा-दादी

अकड़ भी है, गुरुर भी है, रुतबा भी है
चेहरे पर गुस्सा ,आंखो में तेज भी है
निकले जब बन थन के तो किसी से कम नहीं है
वो और कोई नही मेरे मिजाजी दादा जी है

थाट बात शान शोहरत है उनकी
उनकी बेटियां दौलत है जिनकी
प्यार करे तो सब कुछ लुटा दे और गुस्सा करे तो एक पल में रूला दे
वो और कोई नही मेरे गुस्से वाले दादा जी है

जिनकी मुस्कुराहट जान है जिसकी
जिनकी मधुरता गर्व है जिनका
जिसके लिए सबसे लड़ ले, और जिसके लिए जन्नत सजा दे
वो और कोई मेरे प्यारे दादा जी की प्यारी बीवी है

अकड़ती भी है झगड़ती भी है
निकलती है जब बन थन के तब रह जाती है दंग उनकी बहुए उन्हें देख के
कहने में उनकी सांस कहलाती है
वो और कोई नही मेरी प्यारी दादी जी कहलाती है

डाटते भी है मान भी जाते है
बदमाश पोतो के बादशाह है
चहकती पोतियों की कोहिनूर है
वो और कोई नही मस्ती खोर बच्चो के दादा दादी कहलाते है l 


-हिमानी सराफ

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