"उस चांद से"


" उस चांद से"


पूर्णिमा की रात में जब पड़ी हमारी नजर उस चांद पे
यकीनन हमारे प्यार पर वो भी हमे उस चांद में ही देख रहा होगा ।

उस प्यार भरी रात में जब देखा हमने उसे उस चांद में 
यकीनन हमें हमारी यादों पर उसने भी हमारी झलक को महसूस किया होगा ।

उस मिलन की रात में जब मांगा हमने उसे उस चांद से
यकीनन हमें हमारे मन पर उसने भी हमें ही चुना होगा ।

टिमटिमाती रात में जब दिखा हमें टूटता तारा उस चांद के पास में
यकीनन हमें हमारी ज़िद पर उसने उस तारे से हमें ही मांगा होगा ।

पूरी रोशनी से भरी रात में जब टिकी हमारी नजर उस चांद पे लगे दाग पे
यकीनन हमें हमारी मोहब्बत पर उसने हमें हमारी कमजोरी के साथ अपनाया होगा ।

उस शर्मीली सी रात में जब सोचती हमारी निगाहे उस चांद को देखते
यकीनन हमें उस चांदनी पर हमें एक होते देख गगन भी मुस्कुराया होगा ।



-हिमानी सराफ

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